सुप्रीम कोर्ट का फैसला: एग्रीमेंट में मध्यस्थता का प्रावधान होने पर भी उपभोक्ता फोरम में जा सकता है शिकायतकर्ता

KK Sagar
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने एक अहम फैसले में यह दोहराया कि किसी समझौते (एग्रीमेंट) में मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) होने के बावजूद, उपभोक्ता को उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज करने से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि किसी भी उपभोक्ता को विवाद के निपटारे के लिए केवल मध्यस्थता प्रक्रिया अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, बल्कि यह उसका विशेष अधिकार होगा कि वह यह तय करे कि वह मध्यस्थता प्रक्रिया अपनाएगा या उपभोक्ता फोरम का रुख करेगा।

मामले का संक्षिप्त विवरण

यह मामला जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसनुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ के समक्ष आया था। इस मामले में एक त्रिपक्षीय एग्रीमेंट (Tripartite Agreement) पर विवाद था, जिसमें मध्यस्थता खंड शामिल था। मामला इस प्रकार था:

  • उत्तरदाता (मूल शिकायतकर्ता) ने आईसीआईसीआई बैंक से ₹17,64,644 का हाउसिंग लोन लेकर एक फ्लैट खरीदा था।
  • मुबारक वहीद पटेल नामक एक व्यक्ति ने उक्त फ्लैट को ₹32,00,000 में खरीदने की इच्छा व्यक्त की।
  • इस लेन-देन के तहत ₹23,40,000 का नया लोन एग्रीमेंट अपीलकर्ता (सिटीकॉर्प फाइनेंस) और ऋणी के बीच हुआ।
  • चूंकि फ्लैट पहले से ही आईसीआईसीआई बैंक के पास गिरवी था, ऋणी ने अपीलकर्ता से अनुरोध किया कि वह ₹17,80,000 सीधे आईसीआईसीआई बैंक को भुगतान करे, जिससे फ्लैट की गिरवी हट सके।

बाद में, उत्तरदाता (खरीदार) ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) में एक शिकायत दर्ज की, जिसमें अपीलकर्ता (सिटीकॉर्प फाइनेंस) को ₹13,20,000 की शेष बिक्री राशि का भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की।

उत्तरदाता का दावा था कि उनके, अपीलकर्ता और ऋणी के बीच त्रिपक्षीय एग्रीमेंट था, जिसमें यह प्रावधान था कि अपीलकर्ता संपूर्ण बिक्री राशि का भुगतान करेगा।

एनसीडीआरसी (NCDRC) का फैसला

एनसीडीआरसी ने उपभोक्ता की शिकायत को स्वीकार किया और अपीलकर्ता सिटीकॉर्प फाइनेंस को आदेश दिया कि वह:

  1. ₹13,20,000 की राशि ब्याज सहित लौटाए।
  2. मुकदमेबाजी की लागत के रूप में ₹1,00,000 का भुगतान करे।

इस आदेश के खिलाफ, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि विवादित त्रिपक्षीय एग्रीमेंट में मध्यस्थता का प्रावधान था, लेकिन यह भी देखा कि स्वयं एग्रीमेंट का अस्तित्व ही विवादित था। इस मामले में, उपभोक्ता ने उपभोक्ता फोरम का रुख करने का विकल्प चुना था, और इसलिए उसे ऐसा करने से रोका नहीं जा सकता।

महत्वपूर्ण न्यायिक संदर्भ और उदाहरण

सुप्रीम कोर्ट ने “M. Hemalatha Devi v. B. Udayasri (2024)” और “Emaar MGF Land Ltd. Vs Aftab Singh (2019) 12 SCC 751” मामलों का हवाला देते हुए कहा:

  • उपभोक्ता विवादों को मध्यस्थता योग्य नहीं माना जाता, जब तक कि उपभोक्ता स्वेच्छा से मध्यस्थता प्रक्रिया को न चुने।
  • यदि किसी एग्रीमेंट में मध्यस्थता का प्रावधान है, तो यह बाध्यकारी नहीं हो सकता, जब तक कि उपभोक्ता स्वेच्छा से इसे अपनाने के लिए सहमत न हो।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 एक कल्याणकारी कानून है, जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है।
  • उपभोक्ता विवादों को मध्यस्थता जैसे निजी मंच के बजाय सार्वजनिक मंच (उपभोक्ता फोरम) में ही सुलझाया जाना चाहिए।

M. Hemalatha Devi v. B. Udayasri (2024) मामले में कोर्ट की टिप्पणी

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी विवाद को मध्यस्थता से बाहर रखा जा सकता है, चाहे वह स्पष्ट रूप से हो या निहित रूप से, जो विवाद की प्रकृति पर निर्भर करता है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि:

  • मध्यस्थता खंड के आधार पर किसी उपभोक्ता को बाध्य नहीं किया जा सकता कि वह केवल मध्यस्थता का ही रास्ता अपनाए।
  • जब कोई व्यक्ति उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत न्याय की मांग करता है, तो यह देखना आवश्यक होता है कि विवाद मध्यस्थता योग्य है या नहीं।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सार्वजनिक नीति का हिस्सा है, इसलिए उपभोक्ता विवादों को अनिवार्य रूप से गैर-मध्यस्थता योग्य माना जाना चाहिए।
  • यदि दोनों पक्ष स्वेच्छा से मध्यस्थता को नहीं चुनते, तो विवाद को मध्यस्थता के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

फैसले के निहितार्थ और प्रभाव

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि:

  1. मध्यस्थता खंड का दायरा सीमित है – यदि कोई एग्रीमेंट मध्यस्थता का प्रावधान करता है, तो भी उपभोक्ता को उपभोक्ता फोरम में जाने का अधिकार बना रहता है।
  2. उपभोक्ता के अधिकार मजबूत हुए हैं – अब कंपनियां या सेवा प्रदाता केवल मध्यस्थता खंड का सहारा लेकर उपभोक्ताओं को न्याय पाने से नहीं रोक सकते।
  3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को प्राथमिकता मिली है – कोर्ट ने इसे कल्याणकारी कानून बताते हुए उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा को सर्वोपरि माना।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी राहत है। अब उपभोक्ता, चाहे उनका किसी भी प्रकार का विवाद हो, यदि वे मध्यस्थता प्रक्रिया के बजाय उपभोक्ता फोरम का रुख करना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं। यह फैसला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की भावना को बनाए रखने और न्याय तक उपभोक्ताओं की पहुंच को आसान बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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