धनबाद के सदर अस्पताल में कैटगट,वीकरील समेत कई दवाओं का आभाव,डिलीवरी के मरीजों को होती है परेशानी, विभाग नहीं है गंभीर

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मिरर मीडिया : कोर्ट मोड़ स्थित सदर अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है प्रति महीने डॉक्टर और कर्मचारियों पर भले ही लाखो रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन मरीजों की दवा के नाम पर विभाग आंखें मूंद कर बैठा है।

दरअसल, सदर अस्पताल में पिछले 3 महीने से दवा का अभाव है। जिसके कारण डिलीवरी के लिए आए मरीजों को काफी परेशानियां होती है और उनके परिजनों को बाहर से दवाए मांगने पड़ती है डिलीवरी के समय लगने वाले कैटगट और विकरिल के नहीं मिलने से मरीजों के परिजनों को काफी परेशानियां होती है और उन्हें मजबूरीवश बाहर से खरीदने पड़ते हैं यहां बता दे की कैटगट नॉर्मल डिलीवरी के लिए एक जबकि सिजेरियन के लिए दो की जरूरत होती है विगत18 दिन में करीब 138 डिलीवरी हुए हैं ऐसे में करीब ₹600 के बाहर से कैटगट मरीज को खरीदने पड़ रहे हैं हालांकि सदर अस्पताल प्रबंधन की माने तो उनके द्वारा चार-पांच बार सिविल सर्जन को रिमाइंडर भेजा गया है लेकिन अब तक दवाएं नहीं मिली है।

वहीं इस बाबत जब सिविल सर्जन से बात हुई तो उन्होंने कहा कि सब कुछ का अभाव रहेगा यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं है इसकी जिम्मेवारी DPM और नोडल पदाधिकारी की है।

विगत 18 दिनों के आंकड़े पर अगर नजर डाले तो सदर अस्पताल में कुल 138 डिलीवरी हुई है जिसमें 94 नॉर्मल जबकि 44 सीजेरियन है। बता दें कि कैटगेट जानवर की आंत से बनी कठोर रस्सी होती है जिसका उपयोग टांके के लिए लगभग नार्मल एवं सीजेरियन डिलीवरी के केस में किया ही जाता है। अनुमानित एक महीने में देखा जाए तो 200 से 300 के करीब कैटगेट की जरुरत पड़ती है लेकिन मौजूदा हालात में एक भी उपलब्ध नहीं है लिहाजा मरीजों को बाहर से इसे खरीदना पड़ रहा है।

वही दूसरी तरफ सदर अस्पताल में कुपोषण उपचार केंद्र अब तक नहीं खुल पाया। दरअसल यह विभाग दवा के अभाव में नहीं खुल पा रहे हैं। विगत 3 दिसंबर को स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव विद्यासागर शर्मा पंकज ने निरीक्षण के दौरान कुपोषण उपचार केंद्र शुरू करने की बात कही थी साथ ही सदर अस्पताल में दवाओं की उपलब्धता हो इसको लेकर भी निर्देश दिए थे बावजूद स्थिति में कोई सुधार ना हुई और ना ही कोई पहल देखी गई जबकि दवा की उपलब्धता सिविल सर्जन कार्यालय से होनी है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब डॉक्टर और संसाधन होने के बावजूद दवा के अभाव में केंद्र नहीं खुल रहे हैं। अब कितनी जल्दी दवा उपलब्ध होती है और मरीजों को राहत मिलती है यह देखना होगा

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