आज महासप्तमी, शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन : माँ दुर्गा का सातवां स्वरूप शत्रुओं का विनाश करने वाली माँ कालरात्रि की होती है पूजा

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मिरर मीडिया : या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थात हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।

आज आश्विन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और शनिवार का दिन है। आज शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है। जिसे महासप्तमी के नाम से जानते हैं। इस वर्ष महासप्तमी त्रिपुष्कर योग में है। इस योग में किए गए कार्यों के तीन गुने फल प्राप्त होते हैं। महासप्तमी को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा करते हैं। मां कालरात्रि के आशीर्वाद से भक्तों के भय, रोग और दोष खत्म हो जाते हैं। इनकी पूजा से अकाल मृत्यु का योग भी टल सकता है। संकटों को दूर करके भक्तों की रक्षा करती हैं  मां कालरात्रि का रंग काला है और वह देखने में भयंकर हैं। उनके स्वरूप को देखकर ही डर पैदा होता है। शत्रु उनके सामने टिक नहीं पाते  ये देवी शत्रुओं के लिए साक्षात् काल के समान हैं, इस वजह से इनको कालरात्रि कहते हैं।

ओम देवी कालरात्र्यै नमः

माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गदहा) है। वे हाथों में कटार और व्रज धारण करती हैं। उनके केश खुले होते होते हैं। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

महासप्तमी के दिन मां कालरात्रि को रातरानी का फूल अर्पित करना चाहिए। यदि वह नहीं मिलता है तो देवी को लाल रंग का गुड़हल या लाल गुलाब चढ़ाएं। मां कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि।।

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।

माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।

माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए।

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