मिरर मीडिया : UGC (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) ने एक बड़े कदम के तहत केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए अनिवार्य PhD की अनिवार्यता को समाप्त करने जा रहा है। इसके पीछे मुख्य वजह उद्योग जगत के विशेषज्ञों और पेशेवरों को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने का मौका देना है, जिनमें से ज्यादातर अपने क्षेत्र में ज्ञान तो भरपूर रखते हैं, लेकिन पीएचडी की डिग्री कम के पास ही होती है। इसके लिए युजीसी की ओर से प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस और एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस जैसे विशेष पद सृजित किए जा रहे हैं।
इस बाबत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि कई विशेषज्ञ हैं जो पढ़ाना चाहते हैं और कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिसने बड़ी परियोजनाओं को लागू किया हो और जिसके पास जमीनी स्तर का अनुभव हो, या कोई महान नर्तक या संगीतकार हो सकता है. लेकिन हम उन्हें मौजूदा नियमों के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए नियुक्त नहीं कर सकते।
वहीं विशेषज्ञों और संस्थानों की आवश्यकताओं के आधार पर ये पद स्थायी या अस्थायी हो सकते हैं। 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने वाले विशेषज्ञ भी पूर्ण या अंशकालिक फैकल्टी के रूप में शामिल हो सकते हैं और 65 वर्ष की आयु तक पढ़ा सकते हैं।