चुनाव आयोग की ओर से ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (एसआईआर) के तहत, बिहार के तीन लाख से अधिक मतदाताओं को नोटिस भेजा जा रहा है। आयोग का कहना है कि ये वोटर्स संदिग्ध पाए गए हैं। एसआईआर के दौरान मतदाताओं के पहचान दस्तावेजों में विसंगतियां पाए जाने के बाद इन मतदाताओं को नोटिस जारी किए हैं। सूत्रों के हवाले मिली खबर के मुताबिक और अब उन्हें सात दिनों के भीतर उपस्थित होने के लिए नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है।

बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले स्पेशल इंटेंसिव रिविजन के तहत मतदाता सूची की जांच चल रही है। चुनाव आयोग द्वारा 1 अगस्त को जारी की गई ड्राफ्ट मतदाता सूची में कुल 7.24 करोड़ मतदाताओं के नाम शामिल किए गए हैं। इन सभी वोटर्स को पात्रता साबित करने के लिए चुनाव आयोग कि तरफ से निर्धारित 11 दस्तावेजों में से कोई एक दस्तावेज 1 सितंबर तक जमा करना होगा।
पहचान और नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांगे
चुनाव आयोग ने रविवार को एक आधिकारिक बयान में बताया कि अब तक 98.2% वोटर्स ने जरूरी दस्तावेज जमा कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार, इस हफ्ते से ईआरओ उन मतदाताओं को नोटिस भेज रहे हैं जिन्होंने या तो कोई दस्तावेज नहीं दिया है, गलत दस्तावेज दिखाए, या फिर जिनकी नागरिकता और पात्रता को लेकर संदेह है। इसमें हर मतदाता से पहचान और नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
घुसपैठ कर भारत में आने का संदेह
आशंका जताई गई है कि ये तीन लाख वोटर्स, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान से घुसपैठ करके भारत में आने वाले लोग हो सकते हैं। किसी तरह उन्होंने यहां का आधार और मतदाता पहचान पत्र बनवा लिया है। इस बात की भी पड़ताल की जाएगी कि उन्होंने आधार और अन्य दस्तावेज कैसे बनवाए। आयोग का कहना है कि इन मतदाताओं ने अब तक अपनी पहचान के सत्यापन के लिए कोई दस्तावेज जमा नहीं कराया है। इसी कारण से आयोग की ओर से इन्हें नोटिस भेजा जा रहा है।
लगभग 65 लाख नामों को ड्राफ्ट लिस्ट से हटा
चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी एक विशेष आदेश के तहत, बिहार के सभी 7.89 करोड़ रजीस्टर्ड मतदाताओं को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए 25 जुलाई तक गणना फॉर्म भरना जरूरी था। आयोग के अनुसार, समय सीमा तक कुल 7.24 करोड़ लोगों ने फॉर्म जमा किए। लगभग 65 लाख नामों को ड्राफ्ट लिस्ट से हटा दिया गया। हटाए गए नामों में वो लोग शामिल हैं जो या तो मृत पाए गए, राज्य से बाहर प्रवास कर चुके थे, एक से ज्यादा जगहों पर नामांकित थे। चुनाव आयोग ने 2003 के बाद रजीस्टर्ड सभी वोटर्स से उनकी जन्मतिथि और/या जन्म स्थान का प्रमाण देने को कहा। साथ ही 1 जुलाई 1987 के बाद जन्मे लोगों से उनके माता-पिता के दस्तावेज भी मांगे गए, ताकि उनकी नागरिकता की पुष्टि की जा सके।