देश में आने वाला है सियासी “तूफान”, अब थरूर के सवालों का कांग्रेस कैसे देगी जवाब?

Neelam
By Neelam
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कांग्रेस सांसद शशि थरूर पिछले कुछ समय से बगावती रूख अपनाए हुए हैं। थरूर अपनी ही पार्टी कांग्रेस पर हमलावर हैं। अब थरूर ने 1975 में लगी इमरजेंसी को लेकर कांग्रेस को घेरा है। दरअसल, थरूर ने इमरजेंसी पर एक आर्टिकल लिखा है, इसमें आपातकाल की जमकर आलोचना की है। थरूर ने कहा कि आपातकाल के नाम पर आजादी छीनी गई। उन्होंने आपातकाल में इंदिरा गांधी और संजय गांधी के कामों को लेकर सवाल उठाए। थरूर का ये आर्टिकल में नए सियासी तूफान की आहट है।

शशि थरूर ने मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में आपातकाल पर लेख लिखा है। गुरुवार को प्रकाशित अपने लेख में आपातकाल को सिर्फ भारतीय इतिहास के ‘काले अध्याय’ के रूप में याद नहीं करके, इससे सबक लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए उठाए गए कदम कई बार ऐसी क्रूरता में बदल जाते हैं, जिन्हें किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता।

राजनीतिक असहमति को बेरहमी से दबा दिया गया-थरूर

अपने लेख में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, 25 जून, 1975 को भारत एक नई रियालिटी के साथ जागा। हवाएं सामान्य सरकारी घोषणाओं से नहीं, बल्कि एक भयावह आदेश से गूंज रही थीं। इमरजेंसी की घोषणा कर दी गई थी। 21 महीनों तक, मौलिक अधिकारों को सस्पेंड कर दिया गया, प्रेस पर लगाम लगा दी गई और राजनीतिक असहमति को बेरहमी से दबा दिया गया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने अपनी सांस रोक ली। 50 साल बाद भी, वो काल भारतीयों की याद में “आपातकाल” के रूप में जिंदा है।

नसबंदी अभियान पर साधा निशाना

आर्टिकल में आगे कहा गया, अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास क्रूरता में बदल दिए गए। जिन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता। थरूर ने कहा कि इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया। यह आपातकाल का गलत उदाहरण बना। ग्रामीण इलाकों में मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और जबरदस्ती की गई। नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त कर दिया गया और उन्हें साफ कर दिया गया। हजारों लोग बेघर हो गए। उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया।

इंदिरा गांधी पर साधा निशाना

थरूर ने आगे लिखा, पीएम इंदिरा गांधी को लगा था कि सिर्फ आपातकाल की स्थिति ही आंतरिक अव्यवस्था और बाहरी खतरों से निपट सकती है। अराजक देश में अनुशासन ला सकती है। जब इमरजेंसी का ऐलान हुआ, तब मैं भारत में था, हालांकि मैं जल्द ही ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया और बाकी की सारी चीजें वहीं दूर से देखी। जब इमरजेंसी लगी तो मैं काफी बैचेन हो गया था। भारत के वो लोग जो ज़ोरदार बहस और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के आदी थे, एक भयावह सन्नाटे में बदल गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जोर देकर कहा कि ये कठोर कदम जरूरी थे।

न्यायपालिका भारी दबाव में झुक गई-थरूर

थरूर ने कहा, न्यायपालिका इस कदम का समर्थन करने के लिए भारी दबाव में झुक गई, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण और नागरिकों के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के निलंबन को भी बरकरार रखा। पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। व्यापक संवैधानिक उल्लंघनों ने मानवाधिकारों के हनन की एक भयावह तस्वीर को जन्म दिया। शशि थरूर ने आगे कहा, उस समय जिन लोगों ने शासन के खिलाफ आवाज उठाने का साहस किया उन सभी को हिरासत में लिया गया। उनको यातनाएं झेलनी पड़ी।

लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेने की सलाह

थरूर ने लोकतंत्र को हल्के में ना लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा, यह एक बहुमूल्य विरासत है जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए। इसे दुनिया भर के लोगों के लिए एक स्थायी अनुस्मारक के रूप में काम करने दें। आज का भारत 1975 का भारत नहीं है। उन्होंने कहा कि हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मजबूत लोकतंत्र हैं। फिर भी आपातकाल के सबक अभी भी चिंताजनक रूप से प्रासंगिक हैं।

बता दें कि कांग्रेस पार्टी के लिए इमरजेंसी एक पेचीदा और अहम मुद्दा रहा है, खासकर जब से 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई है। केन्द्र की मोदी सरकार ने 25 जून को, जिस दिन आपातकाल की घोषणा हुई थी, संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है। इस साल भी बीजेपी ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया। ऐसे में देश की राजनीति किस दिशा में करवट लेती है, देखना होगा।

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