मिरर मीडिया : कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं पर अभी भी बेटियों को बोझ समझने वाली मानसिकता से कुछ लोग उबर नहीं पाए हैं। लिहाजा कई ऐसी खबर आज भी सुनने और देखने को मिल जाती है। ताज़ा क्रम में एक मामला धनबाद के महिला थाने में देखने को मिला है। जहाँ धनबाद के नया बाजार निवासी पीड़ित इशरत प्रवीण अपनी बेटी को साथ लिए महिला थाने में अपने ससुराल वाले के खिलाफ लिखित शिकायत की है।

वही पीड़िता ने बताया की 2010 में उनकी शादी आसनसोल स्थित फहीम अख्तर के साथ पूरी विधि विधान के साथ संपन्न हुई थी एक साल एक बेटी के जन्म के बाद उनके ससुराल वाले ताना देने लगे उसके बाद पीड़िता ने दूसरी बेटी को जन्म दिया तो पीड़िता के पति भी पीड़िता को पति के द्वारा मारपीट कर बेटा पैदा करने की प्रताड़ना करने लगे हद तब हो गई जब पीड़िता ने तीसरी बेटी को जन्म दिया जिसके बाद ससुराल वालो ने पीड़िता को मारपीट कर घर से निकल दिया थक हार कर पीड़िता ने आज महिला थाने में न्याय की गुहार लगाने पहुंची।
पीड़िता के अनुसार पहली बेटी होने के कारण उनके साथ ससुराल वाले उनके साथ प्रताड़ित करना चालू कर दिए और अब अपनी तीन बेटियों को लेकर इशरत प्रवीण दर दर इंसाफ के लिए भटक रही है। अब सवाल यह उठता है कि बेटियां बोझ क्यो? क्या बेटी होना क्या एक श्राप है?