मिरर मीडिया : कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि यानी दिवाली के दूसरे दिन को भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती है, वहीं भाई बहन को उपहार देखर जीवनभर उसकी रक्षा का संकल्प लेता है। इसे यमद्वितीया, भ्रात द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। भाईदूज का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। मान्यता है कि कार्तिक मास की द्वितीया तिथि को मृत्यु के देवता यमदेव अपनी बहन छाया से मिलने गए थे, उन्होंने अपने भाई का स्वागत तिलक लगाकर किया था। इस दिन से प्रत्येक वर्ष भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि यमद्वितीया के दिन विधि विधान से यमदेव की पूजा अर्चना करने से जीवन में आने वाले कष्टों का नाश होता है तथा अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है।
वहीं आज के दिन ही कायस्थ समाज के लोगों के लिए यह एक बड़ा दिन होता है। चित्रगुप्त पूजा के अवसर पर इस समाज के लोग चित्रगुप्त, कलम, दवात और बहीखाता की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन लेखन से संबंधित कोई कार्य नहीं किया जाता है। भगवान चित्रगुप्त सभी के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के बाद जब आत्माएं यमलोक जाती हैं तो चित्रगुप्त ही उनके कर्मों का लेखा-जोखा बताते हैं।