डिजिटल डेस्क। जमशेदपुर : रतन टाटा भगवान बेहद ही सरल स्वभाव वाले थे। टाटा कर्मियों में वे पूजनीय थे। समूह के चेयरमैन होने के बावजूद उन्हें कई कर्मचारियों का नाम जुबानी याद रहती थी। जब भी वे जमशेदपुर आते, अपने साथ काम कर चुके पुराने कर्मचारियों से जरूर मिलते थे।
टाटा स्टील के पुराने कर्मचारियों का कहना है-रतन टाटा धरातल से जुड़े हुए व्यक्तित्व थे। वे टीम वर्क पर विश्वास करते थे। चेयरमैन होने के बावजूद वे बेहद सरल स्वभाव वाले शख्स थे, इसलिए कर्मचारी उसे कंपनी का अधिकारी नहीं बल्कि अपने बीच का साथी मानते थे। रतन टाटा दो मार्च 2021 को अंतिम बार जमशेदपुर आए थे। इस दौरान वे संस्थापक जेएन टाटा की जयंती पर आयोजित संस्थापक दिवस समारोह में सम्मिलित हुए और हमेशा की तरह सभी कर्मचारियों से मुलाकात की थी। कोविड-19 के दौर के बावजूद रतन टाटा ने सभी को हाथ हिलाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया था। कर्मचारी से लेकर उनके आश्रित भी रतन टाटा की एक झलक पाने के लिए लालायित रहते थे।
ट्रेनी से चेयरमैन तक का सफर :
रतन टाटा ने टाटा समूह में वर्ष 1962 में बतौर ट्रेनी के रूप में अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की। वे नेल्को और एम्प्रेस मिल में बतौर नेतृत्वकर्ता के रूप में काम किया और वर्ष 1991 में अपनी नेतृत्व क्षमता के दम पर समूह के चेयरमैन भी बने। वे वर्ष 1991 से वर्ष 2012 तक टाटा समूह के चेयरमैन के पद पर काम किया।
जमशेदपुर से की थी करियर की शुरुआत :
रतन टाटा ने वर्ष 1965 में बतौर ट्रेनी के रूप में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (अब टाटा स्टील) में काम किया। उस समय में उन्हें इंजीनियरिंग विभाग में बतौर टेक्निकल आफिसर के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया था। उन्होंने कंपनी के कई प्लांट के विस्तारीकरण में डिजाइन टीम के साथ भी काम किया है।