नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर राजनीतिक और संवैधानिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के दो राज्यसभा सांसद—डॉ. मनोज कुमार झा और फैयाज अहमद—ने इस अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम की कई धाराओं को संविधान के अनुच्छेद 1, 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300ए के उल्लंघन के रूप में चिन्हित किया है, और आरोप लगाया है कि ये संशोधन मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्त की जड़ों को हिलाने का प्रयास हैं।
याचिका में अधिनियम के 50 से अधिक धाराओं को चुनौती दी गई है, जिनमें सबसे विवादास्पद धारा 3(आर) है, जो “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” के सिद्धांत को समाप्त कर देती है। यह वही सिद्धांत है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने म. सिद्दीक बनाम महंत सुरेश दास (2020) जैसे ऐतिहासिक मामलों में मान्यता दी थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन न केवल धार्मिक संस्थाओं की सुरक्षा को हटाता है, बल्कि अल्पसंख्यकों की अपनी शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थाएं चलाने की क्षमता पर भी सीधा हमला करता है। इसके अलावा, यह अधिनियम वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की अनिवार्य नियुक्ति जैसे प्रावधानों के जरिए सांप्रदायिक स्वायत्तता को कमजोर करता है।
वक्फ की कानूनी परिभाषा को बदलना, औपचारिक विलेख की अनिवार्यता लागू करना, और ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियों पर सरकारी दावे को वैध बनाना—इन सभी बिंदुओं को याचिकाकर्ताओं ने संविधान की मूल भावना के विपरीत करार दिया है।
याचिका में चेतावनी दी गई है कि यह संशोधन न केवल धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द और धार्मिक स्थलों की पवित्रता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसमें यह भी कहा गया है कि अनिश्चितकालीन मुकदमेबाजी की छूट वक्फ संस्थाओं की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है, जिससे मुस्लिम समाज की ऐतिहासिक धरोहर और धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करेगा कि क्या यह अधिनियम वक्फ की आत्मा को छूने की कोशिश है या फिर सुधार की एक जरूरतमंद पहल। लेकिन इतना तो तय है कि यह मामला आने वाले दिनों में देशभर में राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का केंद्र बनने जा रहा है।