विधिक परामर्श के बाद एक बार फिर आरक्षण और खतियान विधेयक विधानसभा में पेश करेगी सरकार

Anupam Kumar
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मिरर मीडिया : झारखंड सरकार एक बार फिर ओबीसी आरक्षण और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता को परिभाषित करने संबंधी विधेयक को विधानसभा से पास करा सकती है। विभागीय सूत्रों के अनुसार पूर्व में दोनों विधेयक को लेकर की गई आपत्तियों पर राज्य सरकार विधिक परामर्श ले रही है और इसी को आधार बनाकर नए सिरे से विधेयक लाने की तैयारी है।
मालूम हो कि झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण संशोधन विधेयक को लेकर सत्ताधारी गठबंधन
ने अपने घोषणापत्र में भी प्राथमिकता श्रेणी में रखा है। वर्तमान में राज्य में पिछड़े वर्गों को 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है, जिसे बढ़ाकर राज्य सरकार 27 प्रतिशत करना चाह रही है। अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और अनुसूचित जाति का आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने का प्रस्ताव था
बता दें कि राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति संबंधी विधेयक को राज्यपाल के अनुमोदन के लिए राजभवन भेजा था। दोनों विधेयकों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए राष्ट्रपति को भेजने का प्रस्ताव दिया था।

वहीं 1932 के खतियान आधारित विधेयक को तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने यह कहते हुए लौटाया था कि इसकी समीक्षा करें। राज्यपाल ने कहा था कि विधेयक की वैधानिकता पर गंभीरतापूर्वक समीक्षा कर लें और यह देख लें कि यह संविधान के अनुरूप है या नहीं। यह भी समीक्षा करने का निर्देश दिया था कि विधेयक से सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना तो नहीं हो रही है।

इधर,पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन को लेकर राज्य सरकार की तैयारियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। माना जा रहा है कि मानसून सत्र के पहले राज्य सरकार इससे संबंधित निर्णय ले सकती है। फिलहाल आयोग में अध्यक्ष से लेकर सदस्य तक नहीं हैं। नगर निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य सरकार ने ट्रिपल टेस्ट कराने का निर्णय लिया है और इसके लिए कैबिनेट ने पिछड़ा वर्ग आयोग को अधिकृत कर दिया है।

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