ईरान-इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव और वैश्विक अस्थिरता के माहौल में भारत को एक बड़ी आर्थिक खुशखबरी मिली है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 6 जून 2025 को समाप्त सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) में 5.17 अरब डॉलर की जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके साथ ही भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार अब 696.656 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
यह बढ़त इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि इससे एक सप्ताह पहले, यानी 30 मई 2025 को समाप्त सप्ताह में फॉरेक्स रिजर्व में 1.24 अरब डॉलर की गिरावट आई थी। हालांकि भारत का अब तक का सर्वाधिक फॉरेक्स रिजर्व 704.885 अरब डॉलर रहा है, जो 27 सितंबर 2024 को रिकॉर्ड किया गया था।
किन कारकों से हुई वृद्धि?
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार में आई इस बढ़ोतरी की मुख्य वजहें दो रही हैं—
- विदेशी मुद्रा आस्तियां (Foreign Currency Assets – FCA)
- स्वर्ण भंडार (Gold Reserves)
- FCA में उछाल:
बीते सप्ताह FCA में 3.472 अरब डॉलर की बढ़त दर्ज की गई, जिससे यह अब 587.687 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। FCA में अमेरिकी डॉलर के साथ-साथ यूरो, पाउंड और येन जैसी अन्य मुद्राओं का प्रभाव भी होता है, इसलिए इसमें उतार-चढ़ाव वैश्विक मुद्रा विनिमय दरों पर भी निर्भर करता है।
- सोने के भंडार में भी बढ़ोतरी:
भारत के गोल्ड रिजर्व में भी उल्लेखनीय इजाफा देखने को मिला है। 1.583 अरब डॉलर की बढ़त के साथ अब भारत का स्वर्ण भंडार 85.888 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वैश्विक अस्थिरता के समय सोने को सुरक्षित निवेश माना जाता है, जिससे इसकी मांग और कीमत दोनों में वृद्धि होती है।
- SDR और IMF में भी इजाफा:
स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDR) में 102 मिलियन डॉलर की बढ़त के साथ यह आंकड़ा 18.672 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।
IMF के पास जमा भारतीय रिजर्व में 14 मिलियन डॉलर की बढ़त हुई है, जिससे यह 4.409 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
आर्थिक स्थिरता का संकेत
यह बढ़ोतरी भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाती है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बनी हुई है।
विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त से रुपये की स्थिरता सुनिश्चित होती है।
यह संकेत देता है कि भारत अपने आयात-निर्यात संतुलन, कर्ज भुगतान और विदेशी निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद गंतव्य बना हुआ है।
डॉलर रिजर्व की मजबूती से विदेशी निवेश आकर्षित होते हैं और भारत की क्रेडिट रेटिंग में भी सुधार की संभावना बढ़ जाती है।