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प्राइवेट स्कूलों की मनमानी चरम पर : किताबों के नाम पर लाभ के लिए थमा देते हैं प्राइवेट प्रकाशन की महंगी बुक लिस्ट : NCERT की किताबें नहीं हो पाती है उपलब्ध

मिरर मीडिया : नए सत्र में पढ़ाई शुरू होने के साथ बच्चों से लेकर अभिभावकों के लिए चुनौती भरा हो जाता है। प्राइवेट स्कूलों में किताबों के नाम पर अभिभावकों को किताब की एक लंबी लिस्ट थमा दी जाती है और फिर शुरू हो जाता है शिक्षा का व्यापार जिसमें अभिभावकों से किताबों के नाम पर मनमाना रुपया वसूला जाता है।

बता दें कि शिक्षा का मंदिर अब पूर्ण रूप से शिक्षा का व्यापार करने पर उतारू हो गया है। और प्राइवेट स्कूलों के लिए ये एक बड़ी कमाई का जरिया बन चूका है। क्यूंकि NCERT की सस्ती दर पर मिलने वाली किताबें मिलने से रही जिसकी तलाश में अभिभावक भटकते ही रह जाते हैं। वहीं स्कूल इसके बदले प्राइवेट प्रकाशन की किताबें थमा देती है जो NCERT की किताबों के मूल्य की 4 से 5 गुणा तक महंगी होती है।

हालांकि महंगी किताबों का मुद्दा झारखंड विधानसभा में भी उठ चूका है। पर कुछ फायदा नहीं यानी आसमान से टपके खजूर पर अटके!
वहीं प्राइवेट स्कूलों के इस मनमानी रवैये पर लगाम लगाने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा झारखंड शिक्षा न्यायाधीकरण का गठन किया गया था पर एकतरफ प्राइवेट स्कूल अपने लिस्ट में NCERT पैटर्न की किताबों का ज़िक्र तो करते हैं पर उसके मूल प्रति को शामिल नहीं करते हैं।

मरता क्या नहीं करता बेचारे अभिभावक बच्चों के लिए मजबूरन महंगी किताबें खरीदने के लिए विवश हो जाते है। जबकि शिक्षा विभाग का शिक्षा न्यायाधीकरण शिकायतों की बाट जोहता रह जाता है। और स्कूल मनमानी करना नहीं छोड़ता।

शिक्षा विभाग के सचिव के रवि कुमार की माने तो अगर किसी अभिभावक को दिक्कत हो तो वो इस संबंध में DC को आवेदन के साथ इसकी शिकायत कर आगे कार्रवाई कर सकते हैं।

गौरतलब है कि NCERT की किताबें बेहतर और सस्ती होने के साथ गुणवत्ता पूर्ण भी होती है पर इसकी। मूल प्रति बाजारों में कम ही दिखाई पड़ती है। नतीजा अभिभावक की विवशता साफ झलकती है। जहाँ नर्सरी 2500 से 2800 तक UKG 2500-3500 तक कक्षा पहली 3500-4000 तक दूसरी कक्षा 3500- 4500 तक तीसरी कक्षा 4000-5000 इसी तरह 11 वीं और 12 वीं के लिए 8000- 10000 तक मूल्य की किताबें स्कूलों के लिस्ट में होती है जो पूर्णतः लाभ कमाने के लिए प्राइवेट प्रकाशन की होती है। इसी के मुकाबले NCERT पैटर्न की किताबें काफी सस्ती होती है।

ऐसा नहीं है कि ये सारी बातें शिक्षा विभाग एवं जिला स्तर से केंद्र तक के संज्ञान में नहीं। प्राइवेट स्कूलों के इस मनमानी रवैये का सारा लेखा जोखा सामने है पर फिर भी यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की प्राइवेट स्कूलों के इस मनमानी रवैये के आगे सरकार भी नतमस्तक
है। अब नई शिक्षा नीति (NEP) के तहत ये दायरा कहाँ तक भरा जा सकता है या NEP के बाद भी प्राइवेट स्कूलों का वही मनमानी रवैया का व्यापार चलता है ये देखने वाली बात होगी।

Uday Kumar Pandey
Uday Kumar Pandeyhttps://mirrormedia.co.in
मैं उदय कुमार पाण्डेय, मिरर मीडिया के न्यूज डेस्क पर कार्यरत हूँ।

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