जमशेदपुर : टोक्यो ओलंपिक का समापन आठ अगस्त को हो गया। टोक्यो में नीरज चोपड़ा ने भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। भारतीय टीम ने 13 साल बाद ओलंपिक में स्वर्ण पदक का सूखा ख़त्म किया। टोक्यो ओलंपिक में पदकों की बात करें तो दूसरे राज्यों के खिलाड़ी इसमें आगे रहे। झारखंड के खिलाड़ियों का प्रदर्शन अच्छा रहा पर वह कमाल करने से चूक गए। भविष्य में ओलंंपिक में झारखंड शानदार प्रदर्शन कर सकता है। अगर खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिलें। भारत की सरकार की खेल के प्रति उदासीनता और छोटा बजट टोक्यो ओलंपिक की असफलता के लिए कारण बना। भारत की बेटी को ओलंपिक में पहुंचाने के लिए एक पिता को अपनी साइकिल बेचनी पड़ती है। गरीबी के किन किन संकटों से गुजारना पड़ता है। राष्ट्र के लिए टोक्यो ओलंपिक की सफलता तुम नहीं मानी जा सकती। धन्य है, उड़ीसा की सरकार जिसने इस पीड़ा को समझा और भारतीय हॉकी के लिए एक इतिहास रचा। तीन साल पहले जिस तरह से उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने गरीब प्रदेश के मुख्यमंत्री होते हुए भी दिलेरी दिखाते हुए डेढ़ सौ करोड़ का बजट हॉकी के लिए न्योछावर किया। उसकी जितनी भी सराहना की जाए वह कम है। यही कारण है कि भारत की हॉकी में वापसी हुई पुरुष टीम ने जहां ब्रॉन्ज मेडल जीता वही हमारी बेटियों ने चौथा स्थान प्राप्त किया।
अगर इसी तरह के प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए खेल नीति बनाकर प्रयास किया गया होता तो आज हम टोक्यो ओलंपिक के मेडल टैली में 1 से 10 के बीच जरूर होते। वैसे, निश्चित तौर पर राजवर्धन राठौर में खेल मंत्री के रूप में भारतीय खेल के लिए कुछ अच्छे कदम उठाए थे। अगर वह जारी रहता तो टोक्यो में हमारा प्रदर्शन और भी उम्दा होता। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि खेल मंत्री किरण रिजिजू कुछ विशेष नहीं कर सके। अब अनुराग ठाकुर की बारी है। भारत ने बीते दिनों अपना खेल बजट भी घटाया। जो दुर्भाग्यपूर्ण रहा। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने अंत में जिस तरह से ओलंपिक टीम को टोक्यो रवाना होने से पहले भारतीय टीम के साथ बातचीत की। उन्हें बधाई दी । पूरे ओलंपिक के दौरान प्रदर्शन पर निगाह बनाए रखा अगर इसी को वह आगे जारी रखते हैं तो पेरिस ओलंपिक में कमाल से कोई रोक नहीं सकता। एक बात और जो इस मौके पर जरूरी है कि भारत की सरकार को खेल संघों की गंदी राजनीति और सिर्फ सैर सपाटे के अवसरों को तलाशने की परंपरा को खत्म करना होगा। तब वह दिन भी दूर नहीं रहेगा जब भारत में ओलंपिक के आयोजन का सपना भी साकार होगा।
भारत को ओलंपिक में अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए कुछ राज्य सरकारों को विशेष रूप से मदद देनी होगी। वहां योजना बनाकर राज्य सरकार के साथ खेल की नर्सरी को विकसित करना होगा। जो कार्य उड़ीसा में किया गया है वैसा ही अलग-अलग खेलों के लिए हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश,पूर्वोत्तर के राज्य, झारखंड, बंगाल व अन्य प्रदेशों में भी किया जाना उचित होगा। बिहार की सरकार इस क्रम में क्या कर सकती है। यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तय कर सकते हैं। एक समय बिहार ही हॉकी की सबसे बड़ी नर्सरी थी। झारखंड के अलग होने के बाद यह इलाका बिहार से अलग हो गया। इसके बाद बिहार में जो भी खेल को लेकर संभावनाएं थी। वह भी खत्म हो गए। लेकिन बिहार में भी इसे विकसित किया जा सकता है। वैसे, विशेष रुप से झारखंड को तीरंदाजी और हॉकी के लिए विकसित करने की जरूरत है। यहां उड़ीसा सरकार के तर्ज पर काम करने की आवश्यकता है। तब हमारा ओलंपिक में प्रदर्शन हमारे देश के अनुरूप शुरू हो सकेगा अन्यथा हम 34 हजार की आबादी वाले इटली के निकट के द्वीप सान मैरिनो जैसे देश से भी पीछे नजर आ सकते हैं।
रिपोर्टः प्रभात कुमार, सीनियर जर्नलिस्ट