नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी को ऐसे करें प्रसन्न,धन संबंधी परेशानी होगी दूर, सुख-समृद्धि का मिलेगा आशीर्वाद

Anupam Kumar
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पर्व -त्यौहार: शारदीय नवरात्र के छठे दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-उपासना की जाती है। देवी कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। इस दिन भक्तजनों को पूजा के दौरान लाल, मेहरून या फिर गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। ऐसा करने से ग्रहस्त जीवन सुखमय होता है।

मां कात्यायनी की उपासना से अविवाहित जातक शीघ्र ही विवाह के बंधन में बंध जाते हैं। वहीं, विवाहित जातक सुख, समृद्धि की प्राप्ति हेतु मां की उपासना करते हैं।

इसके अलावा तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक नवरात्र के छठे दिन सिद्धि प्राप्ति हेतु अनुष्ठान करते हैं।
धार्मिक मान्यताएं हैं कि मां कात्यायनी की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। धन संबंधी परेशानी भी दूर हो जाती है। अगर आप भी मां कात्यायनी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो नवरात्र के छठे दिन पूजा के समय देवी कवच और स्तोत्र का पाठ, एवं दुर्गा चालीसा का जाप अवश्य करें।

दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुँ लोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परम पद पावै॥

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