गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड स्थित बारडीह पंचायत के केवना गांव से एक संवेदनशील और सामाजिक रूप से चुनौतीपूर्ण मामला सामने आया है। आदिम जनजाति कोरवा समुदाय के पांच परिवारों ने कथित तौर पर सोशल मीडिया, विशेष रूप से यूट्यूब पर प्रार्थना सभा का वीडियो देखकर अपना पारंपरिक धर्म छोड़कर नया धर्म अपनाने का फैसला किया। इस घटना से गांव में तनाव का माहौल बन गया है, जिसके चलते प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा है।
क्या है मामला?
केवना गांव में कुल 24 कोरवा आदिम जनजातीय परिवार रहते हैं। इनमें से पांच परिवारों के कुल 38 सदस्यों ने धर्म परिवर्तन कर लिया है। इन परिवारों का कहना है कि उनके कुछ सदस्य लंबे समय से बीमार थे, और उन्होंने पारंपरिक इलाज के तमाम प्रयास किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। इसी बीच गांव के बंधु कोरवा नामक युवक ने यूट्यूब पर एक प्रार्थना सभा का वीडियो देखा, जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार प्रार्थना से लोगों की बीमारी ठीक हुई है।
प्रभावित होकर बंधु कोरवा ने गुमला जाकर एक प्रार्थना सभा में भाग लिया, और उनका दावा है कि इसके बाद उनके बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हो गए। इस चमत्कारी अनुभव के बाद ही इन परिवारों ने नया धर्म अपना लिया।
धार्मिक बदलाव के बाद बढ़ा तनाव
धर्म परिवर्तन के बाद केवना गांव में सामाजिक तनाव बढ़ गया है। गांव के पारंपरिक ‘सरना स्थल’ पर 3 मई को आयोजित एक सामूहिक पूजा के दौरान इन परिवारों को पूजा में भाग लेने से रोक दिया गया। यह घटना विवाद और मारपीट में बदल गई, जिससे गांव का माहौल और बिगड़ गया।
कुछ ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि धर्म परिवर्तन करने वाले लोग डायन बिसाही (काले जादू या अंधविश्वास से जुड़ी प्रथाएं) सीखने जाते हैं, जिससे सामूहिक विश्वास और आपसी संबंधों में दरार आ गई है।
प्रशासन का हस्तक्षेप
हालात बिगड़ने से पहले ही प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए गांव में कैंप लगाकर स्थिति को नियंत्रित किया। स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने गांव पहुंचकर सभी पक्षों से बातचीत की और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। फिलहाल गांव में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है और संवेदनशीलता को देखते हुए अधिकारियों की नियमित निगरानी जारी है।
समाज में उठ रहे सवाल
यह घटना कई अहम सवाल खड़े करती है—क्या सोशल मीडिया के जरिए धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कोई ठोस नीति है? क्या आदिम जनजातियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा के लिए सरकार पर्याप्त प्रयास कर रही है? और सबसे बड़ा सवाल यह कि जब किसी समुदाय को बीमारी के इलाज के लिए धार्मिक बदलाव करना पड़े, तो यह राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल नहीं खड़ा करता?