UNSC की आपात बैठक में गरजे वैश्विक नेता, ईरान-अमेरिका टकराव से थर्राया मध्य-पूर्व

KK Sagar
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नई दिल्ली/न्यूयॉर्क – ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों को लेकर छिड़े युद्ध की आग अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) तक पहुँच गई है। अमेरिका द्वारा ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फ़ोर्डो, नतान्ज़ और इस्फहान—पर किए गए हमले के बाद वैश्विक स्तर पर खलबली मच गई। ईरान, रूस, चीन और पाकिस्तान की मांग पर UNSC में शुक्रवार रात आपात बैठक बुलाई गई, जिसमें हालात को लेकर कड़ी बहस हुई और कई तीखे बयान सामने आए।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस संघर्ष को ‘बेहद खतरनाक मोड़’ बताया और चेताया कि यदि दोनों पक्षों ने संयम नहीं बरता, तो यह लड़ाई “पूरे क्षेत्र को युद्ध के दलदल में झोंक सकती है।” उन्होंने सभी पक्षों से तत्काल युद्धविराम और शांतिपूर्ण समाधान की अपील की।

बैठक में चीन के राजदूत फू कोंग ने अमेरिका की कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र चार्टर का सीधा उल्लंघन बताते हुए इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून का अपमान’ करार दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि युद्ध की आड़ में परमाणु गैर-प्रसार समझौते को हथियार न बनाया जाए। वहीं रूस के प्रतिनिधि वसीली नेबेन्जिया ने इसे ‘पेंडोरा बॉक्स’ खोलने जैसा कदम बताया, जो पूरी दुनिया की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।

पाकिस्तान ने भी इस मुद्दे पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि पश्चिम एशिया में अगर हालात बिगड़ते हैं, तो उसका असर एशिया समेत पूरी दुनिया पर पड़ेगा। पाकिस्तान ने शांति की बहाली के लिए सभी ताकतवर देशों से सामूहिक प्रयास करने की अपील की।

उधर अमेरिका ने अपनी कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा कि ईरान की गतिविधियाँ “सीधी सैन्य और परमाणु धमकी” बन चुकी थीं, जिनसे निपटना ज़रूरी था। अमेरिकी राजदूत डोरोथी शिया ने कहा कि अमेरिका केवल आत्मरक्षा में कार्रवाई कर रहा है और यदि ईरान फिर कोई हमला करता है, तो जवाब और भी कड़ा होगा।

ईरान के प्रतिनिधि ने अमेरिका और इज़राइल पर कूटनीति को तहस-नहस करने का आरोप लगाते हुए कहा कि “अब ईरान मजबूरन अपने तरीके से जवाब देगा।”

इस बीच अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने जानकारी दी कि हमले से तीनों ठिकानों में संरचनात्मक क्षति हुई है, लेकिन कोई रेडियोधर्मी रिसाव नहीं हुआ है। हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ऐसे हमले दोहराए गए, तो बड़ी मानव त्रासदी हो सकती है।

तेल और गैस की वैश्विक आपूर्ति पर भी इस टकराव का असर दिखाई देने लगा है। होर्मुज की खाड़ी में तनाव बढ़ गया है और कुवैत, सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों ने अलर्ट घोषित कर दिया है। ईरान ने जलमार्गों की सुरक्षा को लेकर बड़ा बयान देते हुए इशारा किया है कि यदि हालात नहीं सुधरे, तो वह होर्मुज जलडमरूमध्य को अस्थायी रूप से बंद कर सकता है।

मौजूदा हालात को देखते हुए यूरोपीय देशों ने मध्यस्थता की कोशिशें तेज कर दी हैं। जेनेवा और ब्रसेल्स में बैकचैनल वार्ताएं चल रही हैं, लेकिन ईरान ने स्पष्ट किया है कि वह तब तक किसी भी शांति वार्ता में हिस्सा नहीं लेगा, जब तक उसके परमाणु ठिकानों पर हमले बंद नहीं किए जाते।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस, चीन और पाकिस्तान द्वारा प्रस्तावित युद्धविराम प्रस्ताव को फिलहाल अमेरिका का समर्थन नहीं मिला है, जिससे मामला उलझता दिख रहा है। अगर अमेरिका वीटो करता है, तो यह प्रस्ताव रुक सकता है, हालांकि कूटनीतिक दबाव लगातार बढ़ रहा है।

इस पूरे घटनाक्रम से दुनिया भर में चिंता का माहौल है। यह संघर्ष सिर्फ दो देशों के बीच नहीं, बल्कि वैश्विक स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा और परमाणु संतुलन के लिए सीधा खतरा बन चुका है। आने वाले कुछ दिन निर्णायक साबित हो सकते हैं—या तो बातचीत का रास्ता खुलेगा, या फिर यह टकराव और व्यापक रूप ले सकता है।

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