न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए
मिरर मीडिया : न्यायपालिका देश का सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता है। जिसके क्रियाकलाप से कानून व्यवस्था और न्याय की प्रक्रिया के साथ न्याय किया जाता है। पर इसमें भी पारदर्शिता ना होने से कई सवाल उठ रहें हैं। आपको बता दें कि केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। इस संबंध में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए किरेन रिजिजू ने कहा कि उन्होंने देखा है कि आधे समय न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने के लिए व्यस्त होते हैं, जिसके कारण उनका जो प्राथमिक काम होता है न्याय प्रदान करना, वह प्रभावित होता है।
हालांकि ये पहली दफ़ा नहीं है किरेन रिजिजू ने इससे पहले भी कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं। जहाँ उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा कि 1993 तक भारत में प्रत्येक जजों को भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया जाता था. उस समय हमारे पास बहुत प्रतिष्ठित जज थे।
उन्होंने आगे कहा कि संविधान में इसे लेकर पूरी तरह स्पष्टता है। इसमें कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, ठीक उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए और इसकी पहल खुद न्यायपालिका ही करे तो देश के लिए अच्छा होगा। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारे कार्यपालिका और विधायिका अपने दायरे में बिल्कुल बंधे हुए हैं। अगर वे इधर-उधर भटकते हैं तो न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। समस्या यह है कि जब न्यायपालिका भटकती है, उसको सुधारने का व्यवस्था नहीं है।