मिरर मीडिया धनबाद : महिलायें किसी भी समाज का स्तम्भ हैं। हमारे आस-पास महिलायें, संवेदनशील माताएँ, सक्षम सहयोगी और अन्य कई भूमिकाओं को बड़ी कुशलता व सौम्यता से निभा रही हैं। लेकिन आज भी दुनिया के कई हिस्सों में समाज उनकी भूमिका को नजरअंदाज करता है। इसके चलते महिलाओं को बड़े पैमाने पर असमानता, उत्पीड़न, वित्तीय निर्भरता और अन्य सामाजिक बुराइयों का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
सदियों से ये बंधन महिलाओं को पेशेवर व व्यक्तिगत ऊंचाइयों को प्राप्त करने से अवरुद्ध करते रहे हैं। सामाजिक असमानता, पारिवारिक हिंसा, अत्याचार और आर्थिक अनिर्भरता इन सभी से महिलाओं को छूटकारा पाना है तो जरुरत है महिला सशक्तिकरण की। उक्त बातें मंगलवार को एसएसएलएनटी कॉलेज में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में अवर न्यायाधीश सह जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव निताशा बारला ने कहीं । उन्होंने कहा कि मै स्त्री हूँ, अबला हूँ, ऐसी सोच भी कभी मन में ना लायें। ऐसी आंतरिक असमानता से कुछ भी हासिल नही होगा। आप डटकर खड़ी हो जायें, अपने अधिकार प्राप्त करने हेतु जिस क्षमता की जरुरत है वह सब आप में है। लेकिन जरूरत है आपको अपने अधिकार के प्रति जागरूक होने की। समाज में जागरूकता फैलाने के लिए डालसा प्रतिबध है।
वही कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्राधिकार की पैनल अधिवक्ता जया कुमारी ने कहा कि लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे ढ़केलता है। भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए तथा इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है । ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है।
महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है। परंतु हम उन योजनाओं और कानून के विषय में नहीं जानते जिस कारण उत्पीड़न और अपराध का शिकार हो जाते हैं। वही पैनल अधिवक्ता सुधीर सिन्हा ने महिलाओं से संबंधित विभिन्न कानूनों और उसमें मिलने वाले दंड के प्रावधानों के विषय मे जानकारी दी।