माँ महागौरी को समर्पित आज महाअष्टमी : अलौकिक सिद्धियों को पाने के लिए करें माँ दुर्गा के आंठवे स्वरूप की पूजा-अर्चना और उपासना

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मिरर मीडिया :

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

आज शारदीय नवरात्रि की महाष्टमी तिथि है। आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और रविवार का दिन है। माँ आदिशक्ति दुर्गा के आंठवे रूप में माँ महागौरी को समर्पित देवी की पूजा, अर्चना, आराधना और उपासना की जाती है।  अष्टमी तिथि आज शाम 7 बजकर 59 मिनट तक रहेगी।

ॐ महागौर्ये नमः

माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। माँ महागौरी की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। इसकी उपासना से अर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इसके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।

वहीं एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं।

सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।

एक अन्य कथा के अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं। एक अन्य कथा के अनुसार दुर्गम दानव के अत्याचारों से संतप्त जब देवता भगवती शाकंभरी की शरण मे आये तब माता ने त्रिलोकी को मुग्ध करने वाले महागौरी रूप का प्रादुर्भाव किया। यही माता महागौरी आसन लगाकर शिवालिक पर्वत के शिखर पर विराजमान हुई और शाकंभरी देवी के नाम से उक्त पर्वत पर उनका मंदिर बना हुआ है यह वही स्थान है जहां देवी शाकंभरी ने महागौरी का रूप धारण किया था।

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