मिरर मीडिया : धनबाद के लगभग पुलिस स्टेशनों में कुछ मिले ना मिले पर पुरानी गाड़ियाँ सड़ती हुई जरूर मिल जाएगी। हालांकि ये नज़ारा सिर्फ धनबाद के थानों का नहीं है अपितु आप पूरे भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में जाएंगे वहां हजारों गाड़ियां सड़ती हुई आपको दिख ही जाएगी। आपको बता दें कि यह गाड़ियां पूरी तरह से सड़ जाती हैं और एक अनुमान के मुताबिक भारत को हर साल लगभग 20000 करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है।
जानकारी दें दें कि इसी वर्ष जुलाई में धनबाद जिले के 56 थानों में वर्षों से जब्त वाहनों की सूची बनाने को लेकर परिवहन विभाग की तैयारी देखी गई थी जबकि थानों में जब्त वाहनों की नीलामी होने का आश्वासन भी लोगों को दिया गया था। लेकिन नीलामी की निर्धारित समय सीमा तय नहीं की गई थी। हालांकि उस वक्त वाहनों के मालिक का नाम, पता समेत तमाम जानकारी सभी थानों से मांगी भी गई थी जो अब शायद ठंडे बस्ते में जा चूका है। इस दिशा में सरकार और प्रशासन की कब नींद खुलेगी ये कोई नहीं बता सकता।
पुलिस सूत्रों की माने तो वर्ष 1994 के नीलामी के बाद 2013 तक जब्त हुए वाहनों की पूरी जानकारी झरिया पुलिस को नहीं है। आलम ये है कि 1994 से 2013 तक हुए जब्त वाहन नीलामी के इंतजार में सड़ कर मिट्टी में समा गए है। इसी वजह से इन वाहनों की सूची झरिया पुलिस को भी नहीं है। इन दो पहिया व चार पहिया वाहनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
👉एविडेंस के तौर पर पेश के लिए रखी जाती है जब्त गाड़ियाँ
विदित हो कि ब्रिटिश पार्लियामेंट में 1872 में ब्रिटिश एविडेंस एक्ट 1872 पारित किया था इसके अनुसार अपराधी के पास बरामद सारी चीजें एविडेंस के तौर पर पेश की जाएंगी और उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा और उन्हें अदालत में पेश किया जाएगा। हालांकि ये बात और है कि 1872 में साईकिल का भी अविष्कार भी नहीं हुआ था फिर जब यही कानून ब्रिटिश सरकार ने भारत पर लागू कर दिया फिर यह भारतीय एविडेंस एक्ट 1872 बन गया।
यानी यदि कोई अपराधी अपराध किया है फिर उसे पकड़ा जाता है तो वो जिस गाड़ी में होगा उस गाड़ी को भी एविडेंस बना लिया जाता है या किसी गाड़ी में अपराध हुआ है तो उसे भी एविडेंस एक्ट के तहत जप्त कर लिया जाता है या फिर दो गाड़ियों का एक्सीडेंट हुआ है तब दोनों गाड़ियों को एविडेंस एक्ट में जप्त कर लिया जाता है। और यह जितने भी वाहन पकड़े जाते हैं यह जब तक केस का फाइनल फैसला नहीं आ जाता तब तक थाने में पड़े रहते हैं और गर्मी बारिश सब झेलते हैं।
👉सरकारी वाहनों को इससे रखा गया है मुक्त
अपराध तो अपराध होता है फ़िर वो निजी वाहनों में हो य सरकारी वाहन में। तो फ़िर साक्ष्य के तौर पर थानो में सरकारी वाहन क्यूँ नहीं जब्त कर के रखा जाता। ज्ञात रहे कि सरकारी वाहनों को इनसे मुक्त क्यों रखा गया है अगर ट्रेन में अपराध होता है तो पुलिस पूरी ट्रेन को जप्त कर के थाने में खड़ा नहीं करती या किसी सरकारी बस में कोई अपराध हुआ हो या सरकारी बस या विमान में कोई मुजरिम पकड़ा गया हो तो पुलिस ने एविडेंस एक्ट के तहत सरकारी बस या विमान को उठाकर थाने में कभी रखते नहीं देखा गया।
भारत में 50 से 60 साल मुकदमे की सुनवाई में लग जाती है तब तक यह वाहन पूरी तरह से सड़ जाते हैं और जब केस का निपटारा हो जाता है तब यह वाहन कबाड़ तो छोड़िए सड़कर खाद बन जाते हैं। सोचिये एक वाहन को बनाने में कितना वक्त, ऊर्जा और पैसा खर्च होता होगा पर एक कानून की भेंट चढ़कर सबकुछ समाप्त हो जाता है और किसी के काम नहीं आता। गौरतलब है कि अब ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे बहुत से कानूनों में बदलाव की जरुरत है जिसके तहत अब इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में भी बदलाव करने की जरूरत है।