पांरपरिक आदिवासी विशु पर्व धूमधाम से मनाया गया, दलमा वन्यप्राणी आश्रयणी में नहीं हुआ वन्यजीव का शिकार

जमशेदपुर : हर साल मनाया जाने वाला पांरपरिक आदिवासी विशु शिकार इस साल भी 8 व 9 मई को मनाया गया। इस वार्षिक अनुष्ठान से जुड़ी हुई भावनाओं को ध्यान में रखते हुए वन विभाग के द्वारा कई आवश्यक कदम उठाए गए। जिनसे जंगली जानवरों के शिकार पर रोक लगाई जा सके। उप वन संरक्षक व क्षेत्र निदेशक, गज परियोजना, जमशेदपुर द्वारा दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम से सभी स्थानीय लोगों से यह आग्रह करने का अनुरोध किया गया कि इस पारंपरिक पर्व में किसी जंगली जानवर का शिकार न करें। 4 मई को प्रधान मुख्य वन संरक्षक, झारखण्ड, रांची व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी व मुख्य वन्यप्राणी प्रतिपालक, झारखण्ड, रांची द्वारा सभी संबंधित पदाधिकारियों से बैठक कर तैयारी की जायजा लिया गया व महत्वपूर्ण निर्देश दिये गये।

विशु शिकार के लिए निर्धारित तिथि के कुछ दिनों पहले से ही विभाग के द्वारा वनों की सुरक्षा व उनमें में निवास करने वाले विभिन्न वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए अनेको बैठक का आयोजन किया गया। 5 व 6 मई को मकुलाकोचा व पिण्ड्राबेड़ा में इको विकास समितियों के अध्यक्ष व सदस्यों के साथ मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी, झारखण्ड, रांची व उप वन संरक्षक व क्षेत्र निदेशक, गज परियोजना, जमशेदपुर द्वारा बैठक कर विशु शिकार की रोकथाम के लिए रणनीति तय की गयी। विशु शिकार के दौरान प्रायः देखा गया है कि आस पास के जिलें के लोग भी इस पर्व में भाग लेने के लिए आश्रयणी में आते हैं। जंगली जानवरों के शिकार को रोकने के लिए व इस पर्व की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रशासन के अन्य उच्च पदाधिकारियों के साथ भी विभाग द्वारा समन्वय स्थापित किया गया। बैठक के दौरान फकीर चन्द्र सोरेन द्वारा इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि बाहर से लोग आकर सेंदरा पर्व मनाते है जिसमें वन्यप्राणियों के नुकसान से स्थानीय ग्राम वासियों का ही नुकसान होगा। मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी, झारखण्ड, रांची द्वारा अपने स्तर से आरक्षी महानिरीक्षक व प्रमंडलीय आयुक्त से संपर्क स्थापित किया गया था तथा वन संरक्षक, वन प्रमण्डल पदाधिकारियों व वन क्षेत्र पदाधिकारियों पर गठित गश्ती दलों के कार्यों का समन्वय व अनुश्रवण किया गया। जिला स्तर पर एक कार्य उप वन संरक्षक व क्षेत्र निदेशक, गज परियोजना, जमशेदपुर के द्वारा किया गया।

9 मई को दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के दोनों प्रक्षेत्रों के वनरक्षियों द्वारा अपने अपने क्षेत्र में सधन गश्ती की गई। इस गश्ति के दौरान आश्रयणी के विभिन्न नदी नालों व जलश्रोतों के आस पास के इलाके पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया। क्योंकि इसी इलाके में ही शिकार को फसाने के लिए जाल फांस लगाने के दृष्टिकोण से अनुकूल होते हैं। वरीय पुलिस अधीक्षक से अनुरोध किया गया था कि विशु पर्व के लिए लोगों की आने की संभावना वाले विभिन्न संवेदनशील स्थलों पर विशेष चौकसी प्रदान किया जाय। गोबिन्दपुर थाना अन्तर्गत गादड़ा-गोविन्दपुर तरफ से सेंदरा के लिए आने वाले वाहन, बोड़ाम थाना अन्तर्गत शशांकडीह गांव से जंगल में प्रवेश करने वाले स्थान, पटमदा थाना अन्तर्गत बेलटांड़ व अन्य संवेदनशील स्थानों से आने वाले मार्ग तथा पोटका थाना अन्तर्गत हाता, पोटका से सेंदरा मार्ग इत्यादि पर वाहन व लोगों को रोकने की व्यवस्था करने का आग्रह भी स्थानीय जिला व पुलिस प्रशासन से किया गया था।

विशु शिकार के नियंत्रण के लिए 8 से 9 मई को सघन गश्ति के लिए 10 अलग अलग पथों का चयन किया गया। यह सभी पथ उन क्षेत्रों से होकर गुजरते है जो शिकार के दृष्टिकोण से संवेदनशील हैं या फिर ऐसे स्थलों जहां से दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी में प्रवेश किये जाने की संभावना रहती है। इस कार्य में अत्यधिक मात्रा में बल की आवश्यकता थी इसलिए जमशेदपुर व पास के विभिन्न प्रमंडलों में पदस्थापित सहायक वन संरक्षक, वनों के क्षेत्र पदाधिकारी, वनपाल व वनरक्षियों को शामिल किया गया।

उप वन संरक्षक द्वारा राकेश हेम्ब्रम, देश प्रधान दलमा बुरू सेंदरा समिति, पूर्वी सिंहभूम, दादा समीर व फकीर चन्द्र सोरेन को पत्र के माध्यम से निर्धारित लॉकडाउन में भीड़ नहीं करने तथा सांकेतिक रूप से विशु पर्व मनाने के लिए अनुरोध किया गया था। दलमा राजा राकेश हेब्रम के द्वारा सामाचार पत्र के माध्यम से सूचित किया गया है कि दलमा वन्यप्राणी आश्रयणी में शिकार नहीं करने व सांकेतिक रूप से पूजा-पाठ करने का निर्णय लिया गया। विशु पर्व के इतिहास में पहली बार सेंदरा समिति ने शिकार नहीं करने का निर्णय दलमा राजा राकेश हेब्रम के नेतृत्व में 7 मई को गदड़ा में आयोजित बैठक किया गया। 8 मई की शाम दलमा बुरू सेंदरा समिति के सदस्य फदलोगोड़ा में साधारण पूजा-पाठ कर वापस आने घरों की ओर लौट जाने का निर्णय लिया गया। 9 मई की शाम फदलोगोड़ा गए जहां वनदेवी की पूजा पारम्परिक रिति रिवाज के साथ किया गया। दलमा वन्यप्राणी आश्रयणी में किसी भी वन्यजीव का शिकार नहीं हुआ।

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