आज नहाय-खाय से शुरू हुआ चार दिवसीय महापर्व चैती छठ, जानिए पूरी विधि और महत्व

KK Sagar
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बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देशभर में श्रद्धा और आस्था का महापर्व चैती छठ की शुरुआत हो चुकी है। आज से चार दिनों तक चलने वाले इस पवित्र पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हुई। यह पर्व विशेष रूप से सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के लिए जाना जाता है। चैती छठ मुख्य रूप से चैत्र मास में मनाया जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार साल का पहला महीना होता है। इसे छठ पर्व के कार्तिक महीने में मनाए जाने वाले महापर्व जितना ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

चैती छठ की शुरुआत: नहाय-खाय की महत्ता

चैती छठ का पहला दिन नहाय-खाय कहलाता है। इस दिन व्रती पवित्र स्नान करके शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। आमतौर पर भोजन में कद्दू-भात और चने की दाल बनाई जाती है। इसे खाने के बाद व्रतधारी संकल्प लेते हैं और अगले तीन दिनों तक शुद्धता और नियमों का पालन करते हैं।

दूसरा दिन: खरना

नहाय-खाय के अगले दिन खरना होता है। इस दिन पूरे दिन उपवास रखा जाता है और शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और केले का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस प्रसाद को व्रती खुद ग्रहण करने के बाद परिवार के अन्य सदस्यों और पड़ोसियों को भी दिया जाता है। खरना के साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन छठ पूजा का सबसे प्रमुख दिन होता है, जब व्रती और उनके परिवार के सदस्य नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे जाकर सूर्य देव को संध्या अर्घ्य देते हैं। इस दौरान बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, नारियल, और अन्य पूजन सामग्री रखकर जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। छठी मैया की विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है।

चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण

चौथे और अंतिम दिन उषा अर्घ्य दिया जाता है, यानी सूर्योदय के समय व्रती फिर से नदी या तालाब किनारे जाकर सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं। इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रती के घरों में छठी मैया के भजन गाए जाते हैं और शुभकामनाएं दी जाती हैं।

चैती छठ का महत्व

चैती छठ का विशेष महत्व है क्योंकि यह प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना का पर्व है। इस पर्व में न केवल आत्मशुद्धि का संदेश है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और परिवारिक एकता को भी मजबूत करता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि और रोगों से मुक्ति मिलती है।

इस प्रकार, श्रद्धालु चार दिनों तक कठोर नियमों का पालन करते हुए यह पवित्र पर्व मनाते हैं और छठी मैया से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

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