विकास से कोसों दूर यह गांव, नहीं पहुंची सरकारी योजना, रोजगार के लिए पलायन कर रहे ग्रामीण

Manju
By Manju
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जमशेदपुर: एक गांव ऐसा भी जहां सरकारी रोशनी नही पहुंच पाया। आपको जनकर हैरानी होगी। स्वर्ग जैसे जगह को बढ़ावा क्यों नहीं मिला। झारखंड राज्य के कोल्हान के पूर्वी सिंहभूम जिला की बोड़ाम प्रखण्ड के अधीन बोटा पंचायत अंतर्गत बहुल आदिवासी भूमिज मुंडा परिवार के साथ एक परिवार सवताल माझी परगना परिवार से है।देश आज़ादी के साथ झारखंड राज्य बने 24 वर्ष हो गया। फिर भी यह गांव विकास की रोशनी से सैकडो दूर रहे। रोजगार के लिए ग्रामीणों ने दूसरे राज्य में पलायन किया। इस गांव में बूढ़े और घरेलू महिलाएं रहते है। भय का जीवन जीने पर मजबूर है। लोग हाथी और जंगली जानवर के साथ संघर्ष कर रहे है।

आज देखा जाए तो पुरुलिया जिला के पश्चिम बंगाल के अयोध्या पहाड़ 1010 वर्ग किलोमीटर में फैले है। देखा जाए उस पहाड़ी के ऊपर हजारों परिवार को मकान, स्कूल, पानी ,बिजली, स्वास्थ्य केंद्र, सड़क आदि सुविधा उपलब्ध कराया गया। उसके अपेक्षा दलमा सेंचुरी में बसे इन परिवार को आज तक बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मूलभूत सुविधा मुहैया नही कराया गया। जिससे लोगो को स्वास्थ्य केंद्र पटमदा, बोड़ाम प्रखण्ड मुख्यालय पहुंचने के लिए पहाड़ी के रास्ता से लोगो को चलना पड़ता है। बोड़ाम प्रखण्ड मुख्यालय पहुंचने के लिए 15 से 20 किलोमीटर चलकर पहुंचते है। किसी की तबियत बिगड़ जाने पर रात्रि में उसकी मृत्यु भी हो जाती है। साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी खतरा उठाना पड़ता है। झोला छाप डाक्टर को बुलाया जाता है। उससे इलाज कराते है।

कोंकादासा गांव के ग्रामीणों का राशन कार्ड पर नाम नही चढ़ा, न राशन मिलता है। आधार कार्ड, वृद्धा पेंशन, उज्ज्वला गैस कनेक्शन, पीएम आवास, अबुआ आवास जैसे मूलभूत सुविधा से देश आजादी की अच्छे दिन इन परिवार को देखने को नहीं मिल रहा है। आज भी इन परिवार के लोग टूटे हुए मकान में रहने पर मजबूर है। घर के छत है, लेकिन दरवाजा नही। इस तरह प्रत्येक परिवार में देखने को मिलेगा। आज भी घरेलू महिलाए खाना लकड़ी जलाकर अपने परिवार के लिए भोजन पकाते है। इन परिवार के लोगो को 365 दिन रात का डर समाया रहता है। गर्मी और बरसता के मौसम में सांप,बिच्छू, जहरीली चीजों के साथ वन्य जीव जंतु जैसे हाथी, भालू, लकड़बाघा, रॉयल बंगाल टाईगर आदि जीव जंतु का सामना करते रहना पड़ता है। घायल भी होते है और जान भी चली जाती है।

दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के गज परियोजना में 193.22 वर्ग किलाेमीटर क्षेत्र फल में फैले 28 रेविन्यु विलेजर है। जंगल से घिरे इस गांव में लगभग 28 परिवार बसते है। निजी स्तर से बकरी पालन के साथ, मूलभूत सुविधा जंगल की सूखी लकड़ी, पत्ता, कंद मूल, दातून सामग्री बोड़ाम मार्केट में ले जाकर बेच कर अपना और आपने परिवार का जीवनयापन करते है। निजी जमीन में खेती करने के लिए कोई उपकरण उपलब्ध नहीं है। जिससे बारह महीना खेती कर पाए। साल में एक ही बार ईश्वर के भोरोसे में धान की खेती करते है। लेकिन इसके लिए बड़ी चुनौती है, खेत से लेकर खलियान तक गजराजो से बच पाना मुश्किल होता है। हाथी गरीब किसान के फसलों को अपना निवाला बना लेता है। घर के चारो ओर सुरक्षा के लिए बाहर में लड़की बड़े बड़े रोला लगाया गया। जिससे हाथी की झुंड के आगमन साथ प्रवेश करने पर उसकी आवाज से ग्रामीण पने को सुरक्षित करने की कोशिश करता है। कई बार जान जोखिम में खेलकर लोग अपने परिवार का जीवन बचा पाता है।

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