देश में अब जाति आधारित सर्वेक्षण कराया जाएगा। केन्द्र सरकार ने ये फैसला ले लिया है। हालांकि, एक वक्त था जब सुप्रीम कोर्ट में कास्ट सेंसस से बचने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कई तरह की दलीलें दी गई थी। जातीय सर्वे की खुले मंच से आलोचना की गई थी। मगर, अब हालात बदल गए हैं। आजादी के बाद पहली बार केंद्र सरकार ने भारत में जातिगत जनगणना कराने ऐतिहासिक फैसला लिया है। कास्ट सेंसस के इस निर्णय ने पूरे देश में राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी है। इस बीच बिहार की राजधानी पटना के सड़कों पर बड़े-बड़े पोस्टर टंग गए हैं।
नीतीश की क्या भूमिका है?
‘नीतीश ने दिखाया, अब देश ने अपनाया! प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद। जाति जनगणना पर पटना की सड़कों पर लगे पोस्टर में कुछ ऐसा लिख रहा है। इसके बाद सवाल उठ रहे है कि केन्द्र की मोदी सरकार के इस फैसले में नीतीश की क्या भूमिका है?
दरअसल, महागठबंधन के साथ रहकर बिहार में कास्ट सर्वे कराने के बाद नीतीश कुमार अब नरेंद्र मोदी के पाले में हैं। बिहार में जदयू और आरजेडी की महागठबंधन की सरकार ने करीब तीन साल पहले जाति आधारित सर्वेक्षण लागू करने का ऐलान किया था। 6 जून 2022 में बिहार के नीतीश सरकार ने इसे लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। जाति सर्वेक्षण लागू होने के ऐलान के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तात्कालीन उपमुख्यमंत्री और तेजस्वी यादव ने इसे लेकर कई वादे किए, लेकिन बाद में दोनों ही पार्टियां अलग हो गईं।
नीतीश सरकार ने 2023 में कराया था जाति सर्वे
महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई। बिहार की नीतीश सरकार ने 2023 में जाति आधारित सर्वेक्षण के साथ इतिहास रचा था। 2 अक्टूबर 2023 को इसके आंकड़े जारी किए गए। बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 बताई गई थी। सर्वे के मुताबिक, बिहार में 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), 27% अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), 19% अनुसूचित जाति (SC) और 1.68% अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी है।
बिहार सरकार ने जुटाए अहम आंकड़े
फिर, बिहार सरकार ने ‘बिजगा’ (बिहार जाति आधारित जनगणना) मोबाइल ऐप के माध्यम से डिजिटल शक्ल दिया। सर्वे में 214 जातियों का डेटा जुटाया गया था। बिहार सरकार ने दावा किया कि इससे सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाए गए। इसके साथ ही पूरे देश में जातिगत जनगणना की मांग को और मजबूत किया गया। विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने कास्ट सेंसस को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर रूख अपनाया। जबकि, केंद्र सरकार ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के नैरेटिव को आगे बढ़ाया।
नीतीश का मॉडल केन्द्र को भी स्वीकार!
माना जा रहा है कि पूरे देश में जातीय जनगणना कराने के फैसले के जड़ में नीतीश कुमार ही हैं। उनकी पुरानी मांग को नरेंद्र मोदी सरकार स्वीकार करने के साथ, उसे जमीन पर उतारने की कोशिशें भी शुरू कर दी। पोस्टर के जरिये नीतीश की पार्टी जदयू ने बड़ा मैसेज देने की कोशिश की है। पोस्टर के जरिए केंद्र सरकार और एनडीए की अहम सहयोगी बीजेपी को बताने की कोशिश की गयी है कि बिहार का विकास मॉडल हो या जातिगत मॉडल नीतीश कुमार के रास्ते पर केंद्र सरकार भी चलती है।