पद की गरिमा पर सिस्टम का ग्रहण जियोलॉजिस्ट को बना दिया माइनिंग अधिकारी
मिरर मीडिया : जिसका काम उसी को साजे यह कहावत झारखंड राज्य के खनन विभाग में चरितार्थ हो रही है। जिस प्रकार किसी अभियंता का कार्य चिकित्सक नहीं कर कता उसी प्रकार कोई अभियंता चिकित्सक की जगह नहीं ले सकता। राज्य के खनन विभाग का हाल कुछ ऐसा ही है जहां पद और कार्य एक दूसरे से तालमेल नहीं खाता। अब खनन विभाग के एक जियोलॉजीस्ट (Geologist) को माइनिंग ऑफिसर बना कर पदभार दे दिया गया। जबकि DMO एक टेक्निकल पद है और DMO बनने के लिए माइनिंग इंजीनियरिंग की जरूरत होती है।
गौरतलब है कि पूरे सुबह में ऐसे 60 पद सृजित है। इनमें से 5 पद ऐसे हैं जिसे कार्यक्षेत्र से बाहर जियोलॉजीस्ट को दे दिया गया है। इसका जीता जागता उदाहरण धनबाद, देवघर, रांची, सरायकेला एवं दुमका है। यहां जिला खनन पदाधिकारी का पद जियोलॉजिस्ट संभाल रहे हैं। यह अपने आप में बड़ी अनियमितता को दर्शा रहे हैं। बता दें कि जियोलॉजीस्ट का संबंध पूरी तरह से भूगर्भ विज्ञान पर केंद्रित होता है। जमीन के अंदर मिलने वाले खनिज पदार्थ की उपलब्धता वास्तविकता का पता लगाना मूलत जियोलॉजीस्ट के कार्यक्षेत्र में आता है। संपदा की जानकारी और उसकी उपलब्धता अर्जित कर अपने सीनियर ऑफिसर को देता है। पर कई ऐसे जियोलॉजीस्ट DMO पद पर आसीन हो चुके हैं जो अपने कार्यक्षेत्र के बाहर जाकर कार्य कर रहें हैं।
क्या कहता है न्यायालय
झारखंड उच्च न्यायालय झारखंड उच्च न्यायालय के एक जजमेंट के अनुसार यदि सरकार ने किसी अन्य पद पर तैनात करने का निर्णय लिया है, तो नीतिगत निर्णय के तहत कोई सहायक खनन अधिकारी के रूप में अपनी पोस्टिंग का दावा नहीं कर सकता। चूंकि किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष पद पर प्रतिनियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है, जो कार्य पद नहीं है या निचले ग्रेड के व्यक्ति को उच्च ग्रेड के खिलाफ अपनी पोस्टिंग का दावा करने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता राजीव कुमार सूरी और दूसरे को कोई विशेष राहत नहीं दी जा सकती।
यहां बता दे की ऐसा ही कृषि विभाग के अधिकारीयों की पदस्थापना में अनियमितता बरते जाने की बात सामने निकल कर आ रही है। विभाग में अधिकारीयों के लिए नियमों को दरकिनार कर तय मानक और संकल्प के विपरीत पदस्थापना किया जा रहा है। कृषि विभाग के संकल्प के अनुसार कोटिवार अधिकार तय किये गए हैं। कुछ कोटि को इंस्पेक्ट का अधिकार है जबकि इसके अन्य कोटि वाले को यह अधिकार नहीं है। लेकिन इन तय मानको के विपरीत जाकर इसका उल्लंघन किया जा रहा है। हालांकि संकल्प कि माने तो किसी विशेष परिस्थिति में ही कोटि से बाहर जाकर पदस्थापना किया जा सकता है। इसको लेकर जूनियर अधिकारीयों में काफ़ी रोष भी है। इस संबंध में उनका कहना है कि उनके लिए निर्धारित पद पर मानको को ताक पर रखकर किसी दूसरे कोटि के अधिकारीयों को पदस्थापित कर दिया गया है।
गौरतलब है कि झारखंड बनने के पूर्व बिहार के समय में ही कृषि विभाग के पदाधिकारियों के पदस्थापना का नियम एवं संकल्प का मानक तय किया गया था, जिसे अब भी ढोया जा रहा है।