झारखंड की राजनीति में पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का चलन देखा जाता है, लेकिन इस बार झारखंड में ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जहाँ बेटे खुद अपने पिता के खिलाफ चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। ये बेटे न सिर्फ अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए दृढ़ हैं, बल्कि वे अपने पिता को चुनौती देकर खुद को सियासी तौर पर स्थापित करने की कोशिश में हैं।
टुंडी सीट पर मथुरा महतो बनाम बेटे दिनेश महतो
टुंडी विधानसभा सीट पर जेएमएम के वरिष्ठ नेता और विधायक मथुरा महतो का दबदबा लंबे समय से कायम है। मथुरा महतो ने 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के सिंबल पर इस सीट से जीत हासिल की थी। वे लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं और कुर्मी बहुल इस क्षेत्र में उनका गहरा प्रभाव है।
हालांकि, इस बार मथुरा महतो के सामने खुद उनका बेटा दिनेश महतो चुनौती पेश कर रहा है। दिनेश ने निर्दलीय पर्चा भर दिया है। अब टुंडी की राजनीति में दिलचस्प मोड़ आ गया है, जहाँ मथुरा महतो को अपने ही बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ना पड़ रहा है। हालांकि दूसरे चरण के नामांकन के आखिरी समय मे उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है।
झरिया में पिता रुस्तम अंसारी के सामने बेटे सद्दाम हुसैन
झरिया विधानसभा सीट पर भी पिता-पुत्र की दिलचस्प जंग देखने को मिल रही है। इस सीट से रुस्तम अंसारी ने JLKM (झारखंड लेबर किसान मोर्चा) पार्टी के सिंबल पर मैदान में कदम रखा है। रुस्तम अंसारी इससे पहले भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं और 2014 में उन्होंने यहां से 18 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे।
इस बार रुस्तम के बेटे सद्दाम हुसैन ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर झरिया सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। झरिया कोल नगरी के रूप में मशहूर है और यहां मजदूरों के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय की संख्या भी निर्णायक भूमिका में होती है। हालांकि ये भी अब अपना नाम वापस ले लिए हैँ।
इस सीट पर मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होने की संभावना है। कांग्रेस को झारखंड मुक्ति मोर्चा का समर्थन प्राप्त है, जबकि भाजपा को आजसू का समर्थन मिल रहा है। दोनों ही गठबंधन अपने-अपने समर्थन से झरिया में मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश में हैं।
झारखंड चुनाव की बड़ी तस्वीर
झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें हैं, जिन पर इस बार चुनाव दो चरणों में कराए जाएंगे। इसके साथ ही महाराष्ट्र की 288 सीटों पर भी चुनाव होना है। झारखंड में कई सीटों पर विभिन्न दलों के प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही है। लेकिन इस बार पिता-पुत्र की यह सीधी टक्कर राजनीति में एक अनोखा मोड़ लाती है, जहाँ बेटों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साधने के लिए अपने पिता को ही चुनौती दे डाली है।